जॉब (JOB )

जॉब (JOB) -एक अनकही दास्तान

आज अवनि को खुला नीला आसमान बेहद ही मनमोहक लग रहा था।

चाय की चुस्की लेते हुए अवनि कब अतीत के पन्नो को आसमान में निहारने लगी,

उसे पता ही नहीं चला….

अवनि ओ अवनि….

बेटा बधाई  हो तुम्हारी जॉब (JOB) लग गई।

अवनि के पिताजी खुशी से फूले नहीं समा रहे थे।

सब कितने खुश थे और ये खुशी तब दोगुनी हो गयी

जब अवनि और करण की सगाई हो गई।

आखिर करण भी सरकारी नौकरी में जो था।

करण चार भाइयो में तीसरे नम्बर का कमाऊ पूत था।

बाकी सभी का बाबूजी की प्राइवेट नौकरी के कारण काम चल रहा था।

सगाई का यह सुहाना सफर शुरु हुआ ही था कि

अचानक करण के बाबूजी की तबियत खराब हो गई।

इसलिए उनकी जिद्द के कारण अवनि और करण की शादी जल्द ही करा दी गई।

नया घर, नए लोग,नया माहौल और ढेर सारा प्यार।

पर विधाता ने अवनि के लिए कुछ ओर ही सोच रखा था।

करण के बाबूजी चल बसे।

अब पूरे परिवार का जिम्मा अवनि और करण के कंधो पर आ गया।

पर कहते है ना भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं।

अगले ही महीने बड़े भैय्या की कपड़ो की दुकान चल पड़ी

और मंझले भैय्या की जॉब लग गई। अवनि ने राहत की साँस ली।

फिर से जिंदगी को रंगीन करने के सपने बुने जाने लगे।

मनाली…….हाँ मनाली ही चलेंगे। चहेकते हुए अवनि ने करण से कहा।

करण ने हंस कर हामी भर दी।

हंसी ठिठोली के बीच माँ की आवाज ने दोनों का ध्यान खींचा।

…. शायद कोई मेहमान आए थे। 

ओहो…… आज तो देवर जी को कोई देखने आया है।

……देवर जी को छेड़ने के अंदाज में अवनि ने चुटकी ली। 

रिश्ता पक्का हो गया और अगले महीने का मुहूर्त तय कर लिया गया।

पूरे घर में खुशी का माहौल था। 

सासू माँ ने अवनि और करण को बुला भेजा।

दोनों को बड़े प्यार से अपने पास बैठाया और कहा

“बेटा तुम्हे तो पता ही है कि अगले महीने तुम्हारे छोटे भाई की शादी है।

अब तुम्हारे पापा तो रहे नहीं और बाकी भाइयों के इतनी आमदनी है नहीं

कि वो शादी का खर्चा उठा सके।

तुम दोनों जॉब में हो इसलिए खर्चा तुम्हीं उठा सकते हो। “

करण ने बिना अवनि की सहमति लिए ही खर्चा उठाने के लिए हाँ कर दी।

मनाली जाने का कार्यक्रम रद्द कर दिया गया। 

आखिर छोटे भाई की शादी का दिन आ ही गया।

सभी ने नये व महंगे कपड़े पहने पर

अवनि व करण नए कपड़े नहीं खरीद पाए क्योंकि शादी के लिए उन्हें कर्ज़ा जो लेना पड़ा था।

खूब धूमधाम से शादी हुई। परिवार में एक सदस्य ओर जुड़ गया।

नई बहु को कोई तकलीफ ना हो, इस बात का पूरा ध्यान रखा गया। 

समय बीतता गया। अब अवनि व करण दो प्यारे बच्चों के माता-पिता थे।

पूरे परिवार की जिम्मेदारी सम्भालते हुए भी अवनि के मन में एक सुकून था

कि सब एक छत के नीचे एक साथ रहते है।

पर सुकून की जड़े उस दिन हिल गई जब अवनि बीमारी के कारण एक दिन जल्दी घर आ गई

और उसने अपनी जेठानियों को बात करते सुना

“आ गई महारानी जॉब करके , कोई हम पर अहसान  करती है क्या ?”

अवनि का कोमल मन अंदर तक हिल गया,

आखिर पूरे परिवार का खर्चा उन दोनों से ही तो चल रहा था।

उसने तय कर लिया था कि अब घर खर्च के लिए अपनी कमाई नहीं देगी।

पर अगले ही पल सासू माँ ने हाथ में इस महीने का बिजली का बिल थमा दिया और कहा

“करण को कहना , कल बिजली के बिल की आखिरी तारीख है बीस हजार रुपये देने है।”

जब अवनि ने कहा बिल में तो चारों भाइयों की हिस्सेदारी होनी चाहिए तो सासू माँ ने कह दिया

“अरे उन लोगों की इतनी आमदनी कहाँ है बहू तुम दोनों तो जॉब (JOB) में हो। “

अवनि अपना मन मसोस कर रह गयी।

करण और अवनि का जॉब (JOB) लगे चार साल बीत चुके थे ,

पर दोनों अभी भी कर्ज के बोझ तले दबे थे। एक और साल बीत गया।

 आज अवनि बेहद खुश थी क्योंकि उसका जन्मदिन था

और करण ने वादा किया था कि उसे तोहफे में सोने की चेन दिलाएगा।

पर अवनि और करण की किस्मत में “चैन ” कहाँ।

बाजार जाने के लिए दोनों तैयार ही हुए थे कि अचानक धड़ाम की आवाज आई।

दोनों दौड़ते हुए नीचे गए और देखा कि मम्मी सीढ़ियों से गिर गई है।

बिना देरी किए दोनों मम्मी को अस्पताल ले गए।

जाँच में पता चला कि मम्मी के एक पैर और दो पसलियों में फ़्रैक्चर आया है ऑपरेशन करना पड़ेगा।

आख़िरकार ऑपरेशन सफल रहा।

दस दिन के बाद मम्मी को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई

और पाँच लाख का बिल अवनि के हाथों में थमा दिया गया।

अवनि ने करण से कहा ‘क्यों न आप सब भाई बिल के पैसे बराबर बांट ले।

अपने ऊपर पहले ही बहुत कर्जा है।’करण को अवनि की बात सही लगी।

उसने माँ तक यह बात पहुंचा दी। पर माँ ने कहा

“कैसी बात कर रहे हो, बेचारे उन लोगों की आमदनी ही कितनी है,वो कहाँ से लाएँगे।

तुम दोनों तो जॉब (JOB) में हो।”

अवनि और करण फिर से मन मसोस कर रह गए।

सासू माँ को अस्पताल से घर लाया गया।

अवनि ने अपने संस्कारों के चलते सासू माँ की खूब सेवा की और तीन महीने में सासू माँ ठीक हो गई।

इधर देवरानी एक बच्चे की माँ बन गई।

नामकरण पर सभी रिश्तेदारों को आमंत्रित किया गया।

एक बड़े भोज का आयोजन किया गया। सभी बहुत खुश थे।

अवनि भी खुश थी क्योंकि इस बारउन्हें खर्चा उठाने के लिए जो नहीं कहा गया था। 

पर अवनि की खुशियों के पंख लगे थे ,कब उड़ जाती पता ही नहीं चलता। 

अवनि चाय लेकर सासू माँ के कमरे में पहुँची।

उसने देखा करण कुछ लोगों  का हिसाब कर रहा है।

अवनि ने जब हिसाब के बारे में जानना चाहा तो सासु माँ ने कहा कि

अरे वो नामकरण पर जो खर्च हुआ ना  वो सब उधार पर था ,उसी का हिसाब कर रहा है  करण।

अवनि ने तुरन्त कहा कि वो तो देवर जी का काम था ना।

तभी सासू जी ने जवाब दिया कि “बेचारा वो कमाता थोड़े ही है, वो कहाँ से करेगा।

तुम तो दोनों जॉब (JOB) में हो। “

अब अवनि का धैर्य व संस्कार जवाब देने लगे थे लेकिन वह चुप रही।

संस्कारी जो थी। पर कब तक…..

आखिरकार अवनि ने एक दिन सासू माँ से अपनी रसोई अलग करने की बात कह डाली।

सासू माँ ने वक्त का तकाज़ा देखते हुए चारो भाइयों की रसोई अलग कर डाली।

अब बारी थी सासु माँ के निर्णय की कि वह किसके साथ रहना चाहती है।

सासुमाँ ने अवनि और करण के साथ रहने का निर्णय लिया।

अवनि बड़ी खुश थी कि सासू माँ ने उसे अपनी सेवा लायक समझा।

ये साफ मन वाले भी कितने मासूम होते है ना……

फिर से जिंदगी की गाड़ी पटरी पर दौड़ने लगी। 

अलग होने के बाद आज घर में पहला काम था।

मंझले भैया के बेटे का दशोटन।

सब काम आराम से हो गया।

जब मेहमानों के विदा होने का समय आया तो सासू माँ ने अवनि को बुला भेजा और कहा कि

‘तुम दोनों बाजार से मेहमानों को देने के लिए कपड़े ले आओ।’

तब अवनि ने सासू माँ की बात बीच में काटते हुए कहा कि ये तो जेठजी का काम है ना।

तब सासू माँ ने अवनि को झिड़कते हुए कहा “तुम कैसी बात कर रही हो ,

इतना खर्चा वो अकेले कैसे उठा पाएगा। उसकी इतनी आमदनी कहाँ।

तुम तो दोनों जॉब (JOB) में हो। “

मेहमान घर में होने के कारण अवनि कुछ भी न कह पाई

और एक बार फिर वह अपना मन मसोस कर रह गई।

सब मेहमान चले गए और अगले दिन अवनि भी अपने काम पर चली गई।

भागदौड़ की जिंदगी में अवनि अपने पति और बच्चों को भी समय नहीं दे पा रही थी।

पर विधाता ने शायद अपना सारा समय अवनि के धैर्य की परीक्षा लेने के लिए बचा रखा था..

कुछ ही दिन बाद अवनि की बुआ सास मिलने आ पहुंची।

बहुत दूर होने के कारण पूरे दो साल बाद आयी थी बुआजी।

सभी ने उनका स्वागत किया। सासू माँ ने अवनि को बुलाया और कहा

“बेटा बुआजी कुछ दिन यहीं रहेंगे ,बाकी सब की आमदनी का तो तुम्हें पता ही है। 

तुम दोनों तो जॉब में हो ,इसलिए बुआजी के आवभगत का तुम्हीं देख लेना।”

अवनि ने सासू जी को कुछ नहीं कहा और चुपचाप अपने काम में लग गई।

शायद अब अवनि इसे अपनी नियति मानने लगी थी।

कुछ दिन ऐसे ही निकल गए।

आज अवनि एक अलग ही उत्साह के साथ जॉब के लिए निकल गई।

शाम को जब घर आई तो एक अलग ही सुकून अवनि के चेहरे की रौनक बढ़ा रहा था।

विधाता भी चकरा गए होंगे अवनि के चेहरे का सुकून देखकर। 

अगले दिन सुबह अवनि चाय लिए अपनी बालकनी से आसमान को निहारने लगी।

JOB

अवनि ओ अवनि …..

सासू माँ की आवाज सुन अवनि अतीत के पन्नो से वर्तमान में लौट आई।

क्या मम्मीजी। अवनि ने कहा।

बेटा आज बुआजी वापस जा रहे है तुम दोनों बाजार से उनके लिए कपड़े ले आओ।

बाकी सब की आमदनी तो तुम्हें पता ही है। तुम दोनों तो….

अवनि ने सासू माँ की बात बीच में ही काटते हुए कहा

“मैंने जॉब छोड़ दी है। अब हमारी आमदनी भी इतनी कहाँ।”

सासू माँ अवाक् सी खड़ी एकटक अवनि को देखते ही रह गई।

“कृष्णा”

Read more post…

7 thoughts on “जॉब (JOB )”

  1. Pingback: NCERT MATHS CLASS 10 SOLUTIONS - Easylifeline

  2. Pingback: Story for kids in Hindi - Easylifeline

  3. Pingback: (Story of Guru-shishya) श्रेष्ठ कौन ? - Easylifeline

  4. Pingback: STORY IN HINDI - Easylifeline

  5. Pingback: TEACHER-A STORY IN HINDI - Easylifeline

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!